नवरात्री डायरी……. षष्ठी (हरा)
नवरात्री डायरी……. षष्ठी (हरा)
नैसर्गिक था क्रोध प्रभु का,
स्कन्द पुराण करे उल्लेखा।
उत्पन्न हुई तब आदि स्वरूपा,
कात्यायनी, जिनका नाम है दूजा॥
त्रिदेव अंश हे मात पुनिता,
ऋषि कात्यायन पूजे पराम्बा।
ब्रज मंडल की अधिस्ठात्री देवी,
गोपिया सारी उपासक तेरी॥
पान शहद का भोग लगाए,
समर्पण प्रतिबद्धता माँ सिखलाए।
नमो भवानी, जय भयहर्ता,
कात्यायनी देवी! षष्ठी नवदुर्गा॥
कांतिमय माँ स्वरूप है तेरा,
भास्वर मोहक गहरी वरमुद्रा।
हस्त कमल-तलवार है सोहे,
सिंह सवारी भरसक बोले॥
हरा रंग प्रकृति रूप है,
पौष्टिक गुण से परिपूर्ण है।
प्रारम्भ यही विकास इसी से,
रंग हरा, हर ज्ञान है जिससे॥
पूजा तेरी अति फल दायी,
अद्भुत शक्ति सींचे माई।
ध्यान गोधूलि बेला में करके,
साधक माँ को खुश है करते॥
मनोवांछित वर मांगने पूजे,
कन्या कुंवारी शरण में लीजै।
रोग शोक माँ तर सब जाते,
जो जो शरण तुम्हारी आते॥
महिषासुर मर्दिनी हे माता,
जग में जब जब बुरा है छाया।
उग्र रूप में तुम आती हो,
योद्धा देवी बन जाती हो॥
काल चक्र जो चलता जाए,
दिन छटवा माँ दर्शन पाए।
करो कृपा माँ शांति लाओ,
हम भटके माँ हमें सवारों॥
वध करने महिषासुर का, काल ने रचा प्रसंग।
ब्रम्हा विष्णु महेश के तेज, माता हुई उत्पन्न॥