नफ़रत की बयार
नफ़रत की बयार
आंखों ने रात देखा ख़ौफ़नाक मंज़र था
फिर ख़्याल आया जैसे कोई सपना था
आंखों में नफ़रत हाथ में इक खंज़र था
सुबह चौखट पर खड़ा वह यार अपना था
यकीं का दीया बुझाके कोई अपना आया है
खून बहाकर बोला आज फ़र्ज़ उसने निभाया
पड़ोसी वह अपना ही था नहीं कोई पराया है
भाई चारा क्या है आज हमको भी सिखाया
बचपन की गलियों में कभी साथ खेले थे
चिनार की छांव तले हम यार पले बड़े थे
हरी वादियों में हर पल खुशियों के मेले थे
उस रात हाथो में तलवार लिए यार खड़े थे
जिसने उंगली पकड़ कभी लिखना सिखाया
आज चिराग उसके घर का वह बुझा गया
जिसने मायूसियों से लड़ना था उसे सिखाया
भाई चारा क्या है कल रात वह समझा गया।