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chandraprabha kumar

Action Fantasy

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chandraprabha kumar

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नकलची बाबू हुक्का लिये हुए

नकलची बाबू हुक्का लिये हुए

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नव धनिक बाबू हुक्का लिये हुए

एक हाथ में पकड़ा हुआ है हुक्का

ठाठ से बैठे हैं कुर्सी पर अदा से,

एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रखकर

काले रंग की विक्टोरियन कुर्सी पर

 अहंकारी बाबू साहब रूप बनाकर ।

छैल छबीले बॉंके बंगाली बाबू

बाल बनाये हैं अंग्रेज़ी साहब जैसे,

पैरों में पहने हैं बकलस वाले जूते

नक़ल में अपने गोरे साहब जैसे। 


पहन हरी धोती लिया लाल उत्तरीय

डाले हैं माला जनेऊ भी गले में,

कानों में पड़े हैं बड़े बड़े कुण्डल

माथे पर है पंडित जी जैसा तिलक। 


आधा वेश भारत के बंगाली का

आधा वेश यूरोपीय साहब का,

दोनों रिवाजों की खिचड़ी सा

रूप बना है बंगाली बाबू का। 


न इधर के रहे न उधर के रहे

हँसी उड़ाई है किसी कलाकार ने

बनाकर बंगाली बाबू का चित्र

जो बने हैं हुक्का पीने के शौक़ीन। 


उन्नीसवाँ सदी में अंग्रेज़ों ने

शुरू किया था हुक्का पीना

अवध के नवाबों की देखा देखी

प्रतीक बना था शान- बान का। 


पर चित्रकार तो चित्रकार है

व्यंग्य चित्र बनाया है उस युवा का,

जो दोनों का घालमेल था बंगाल में

समझता था अपनी शान उसी में। 


यह कलकत्ता कालीघाट पेंटिंग है

किसी अज्ञात अनाम चित्रकार की,

सुन्दर चित्र उकेरा है कल्पना से

यथार्थ का कराया अच्छा दिग्दर्शन। 


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