निर्धनता
निर्धनता
पल-पल बढ़ी गरीबी भारी,
फैली कैसी यह बीमारी।
सरकारें हैं कितनी आयी,
पर जनता को समझ न पायी।
हलधर संकट दुख से हारे,
पीड़ा से अब कौन उबारे।
दुख संकट से घिरा हुआ है,
क्या निर्धन का हश्र हुआ है।
जब से निष्ठुर जगत हुआ है,
दुष्कर जीवन बना हुआ है।
व्याकुलता से मन मुरझाया,
तन पर कौन करे अब छाया।
चक्कर भूखे तन को आया,
भू पर शिथिल पड़ी है काया।
मानवता क्यों आज थमी है,
नयनों में भी भरी नमी है।
