वृक्ष हैं प्राण हमारे
वृक्ष हैं प्राण हमारे
जीवन दान हमें देते जो ,वही वृक्ष हैं प्राण हमारे ।
काट -काट क्यों मनुज किये फिर ,जंगल बाँझ सभी बेचारे ।
गर्म हो गयी धरणी सारी ,भीषण कैसी आग लगी है
जल प्रपात है कहीं भयंकर ,तो सूखे की मार कहीं है
डरो प्रलय से है मानव अब ,नहीं असम्भव रहना होगा
छेड़छाड़ जो हुई प्रकृति से ,क्रोध सभी को सहना होगा
ईश्वर का अनुदान वृक्ष हैं जीव जंतु सब इन्ही सहारे
काट -काट क्यों मनुज किये फिर ,जंगल बाँझ सभी बेचारे ।।
सघन वनों से धरा सन्तुलित ,प्राण सुरक्षित रहने दो
मूक खड़े हैं विवश विटप हैं ,सहलाओ इनको कहने दो
लाखों जीव बसेरा करते ,उनका हाय ! घरौंदा तोड़ा
प्रदूषण फैला कर भारी ,पर्यावरण गरल कर छोड़ा
जन्य जीव व्याकुल हो मरते ,कृत्य किया क्यों बिना विचारे
काट -काट क्यों मनुज किये फिर ,जंगल बाँझ सभी बेचारे ।।