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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Action

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

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“ निकल जाओ उन अँधेरों से”

“ निकल जाओ उन अँधेरों से”

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बंद दरवाजे को खोलो

निकल जाओ उन अँधेरों से

वहाँ नज़र कुछ नहीं आने वाला

सामान सारे बेतरतीब से बिखरे पड़े हैं


सही वक्त पर सही चीज नहीं मिलती है

लड़खड़ा रहे कदम

गिर- गिर के संभालना है मुश्किल

ठोकरें आखिर कब तक सहोगे ?

आँख रहते क्यों अंधे बने फिरते हो ?


कानों में सुने रात की तन्हाइयों की आवाज आती है

भला तुम्हारी आवाज़ कौन सुनेगा ?

कुंडी खोलो निकल आओ

खुले आसमान में

मिलो अपनों से और बेगानों से

बना लो सबको अपना


अपनी बातों को साझा करो

उनकी बातों को भी सुनो

कदम मिलाके प्रभातफेरी करके एकता का मंत्र फूँको

सब मिलके करो नव निर्माण

हो अपने भारत का उजाला से सामना

सब धर्म का सम्मान हो


हर तरफ सर्वोदय का मंत्र गुजें

बंद दरवाजे को खोलो

निकल जाओ उन अँधेरों से

वहाँ नज़र कुछ नहीं आने वाला !


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