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Kusum Lakhera

Classics Fantasy Inspirational

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Kusum Lakhera

Classics Fantasy Inspirational

नए प्रतिमान

नए प्रतिमान

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नहीं चाहती कि वह 

एक सजी धजी गुड़िया !

सी श्रृंगार की मूरत बने


नहीं चाहती कि वह 

सिर्फ़ उपभोग की ,

एक प्यारी सी सूरत बने


नहीं चाहती कि वह 

आशीष देती एक भव्य !

मंदिर की मूरत बने


नहीं चाहती कि वह

बस बनाव सिंगार में ,

लगी हुई बला की खूबसूरत बने !


वह अब इस कारा से

मुक्त होना चाहती है !

अब वह नए अंदाज़ में नए विचार से

नए प्रतिमान गढ़ना चाहती है


अपने अस्तित्व की डोर किसी दूसरे 

के हाथों में नहीं सौंपना चाहती है

वह अपने मन से अपनी इच्छाओं से

अपने विचारों से अपनी जिंदगी जीना चाहती है !

अपनी जिंदगी की कहानी

 वह खुद ही लिखना चाहती है !


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