नारी
नारी


नारी का बिन्दास पन
किसी को अखरने लगती है।
नारी की मुस्ककराहट
किसी को बेपरवाह लगती है ।
नरी का गाना नाचना
क्यों किसी को बेेेेशरमी सी लगती हैं ।
नारी का इधर उधर आना-जाना,
किसी को क्यों स्वछन्दता लगती है ।
किसी से बात करना उसका लोगों को
किसी को निर्जल्लता सी लगती हैं ।
नारी यदि कर ले किसी से सवाल
क्यों सवाल उसके समाज के खिलाफ़ लगतीं है ।
पर नारी समझती है सब कुछ,
वह तो चलती रहती है नदी सी
अनवरत अपनी ही धुन में तो
क्यों किसी को ये चाल सी लगती हैं ।।
पर उन लोगो को नहीं है ये पता,
जब वो खिल खिला कर हंसती हैं
तो बच्चों भी दिल खोल हंसते हैं
परिवार की तब जान सी लगती हैं ।।
जब वो नाचती है
बच्चों के साथ,
तो साथ साथ उसके मानो
पेड़ भी झूमने लगते है
फिर भी क्यों वो पराई सी लगती है ।।
नारी तू बन शक्तिशाली
तू नाप ले क्षितिज का छोर
तेरी हथेली पर उभरे सदा
दुनियाँ की तस्वीर जो अच्छी लगती है ।।
प्रेम की तुम हो प्रतिमूर्ति,
प्रेम की अथाह नदियाँ बहा तू
हर काम तू कर ,कर सवाल
उठा कलम लिख जिदंगी कैसी लगती हैं ।।
एक तू ही तो जो मन में
संवेदनाओ का संचार करती है
प्यार की छाँव में दे पनाह सभी को
तू तो सृष्टि की वरदान स्वरुपा लगती हैं ।।
हो बेखौफ़ अपने सपने को सजा
जिदंगी जिदादिली से तू जी ले इसका मज़ा
लोगों को काम है कहना कहते रहेंगे वो
तेरे बिना जीवन की कल्पना अधूरी लगती हैं । ।