नारी तुम घुट-घुट कर जीना छोड़ो
नारी तुम घुट-घुट कर जीना छोड़ो
किस तरह लड़ती रही हो
प्यास से परछाइयों से
नींद से अंगड़ाइयों से
मौत से और ज़िंदगी से,
तीज से तन्हाइयों से
सब तपस्या तोड़ डालो
नारी तुम घुट- घुट कर
जीना छोड़ डालो।
किस तरह लड़ती रही हो
परेशानी और अत्याचार से
उत्पीड़न और बलात्कार से
दहेज़ और ससुराल में प्यार से,
पति के जुल्म और मार से
सब तपस्या तोड़ डालो
नारी तुम घुट- घुट कर
जीना छोड़ डालो।
किस तरह लड़ती रही हो
माँ बाप की दूरी से
मायके की मजबूरी से
समाज में नज़रों की छूरी से,
सब तपस्या तोड़ डालो
नारी तुम घुट- घुट कर
जीना छोड़ डालो।