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डॉ मंजु गुप्ता

Tragedy Inspirational Others

4.5  

डॉ मंजु गुप्ता

Tragedy Inspirational Others

नारी मूर्ति नहीं इंसान है

नारी मूर्ति नहीं इंसान है

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मेरी सखी की डब डबाई आँखों का बाँध

तब और ज्यादा टूट जाता है

जब सुनाती है मुझे अपनी सिसकियों से

शारीरिक, मानसिक टूटन, 

कुंठित जिंदगी की आपबीती


आँसुओं की जागीर में बिखर जाती है

एक -एक लुढ़कते दर्दीले आँसू के मोतियों का संसार 

दुख के सागर में हाहाकार करके

गीत, कविता, कथ् , तथ्य में पीड़ाओं को पिरोता है।


सदियों से नारियाँ पुरुषों से रहीं प्रताड़ित

देनी पड़ती उन्हें समय -समय पर अग्नि परीक्षा

अहम की जंजीरों में जकड़ा है मर्द

जग ने जाना सीता, अहिल्या, मीरा का दर्द

तभी मैथिलीशरण गुप्त को कहना पड़ा


"अबला जीवन हाय ,तेरी यही कहानी

आँचल में है दूध, आँखों में है पानी ।"


चाहे नारी स्वर्ण घरौंदे में रहे

या फिर गरीबी के रेखा के पार रहे

सहनी पड़ती है मर्द की हिंसक वारदात, मार

मर्द के इशारे पर लड़के की चाह में

करनी पड़ती है कोख में भ्रूण हत्या


लव जिहाद के नाम लड़कियों को देनी पड़ती है जान

मर्दों की लड़कियों पर एसिड फेंकनी की गुस्ताखियाँ

नारी जाति से बलात्कार

चाहे वे हाथरस, होशियारपुर, कठवा की बेटी हो

हाल ही में पोकरण, राजस्थान की विधवा को


ससुराल पक्ष के द्वारा दूसरी शादी न करने पर

उसके नाक -कान काट लेना

और

माँ बेटी को बचाने के लिए आयी तो हाथ तोड़ देना

लड़कियों पर एसिड फेंक कर

उन्हें शारीरिक, मानसिक यन्त्रणा देना 

ध्वस्त हो जाता है पल भर में सपनों का संसार।


गूँजती हैं सभी दिशाओं में उसकी चीखें

तब बहरा हो जाता है सारा जमाना

सब्र के आँचल से पोंछती है दर्दीले आँसू

मुस्कुरा के बच्चों को लगाती गले है।


सखी ! कैसे मैं शोषण, हिंसा से उत्पीड़ित हूँ

मुझे याद आती मैके की बात

बेटी ! अगर तूने कुछ ऊँच - नीच की

तो ससुराल से तेरी अर्थी ही आएगी ।

भय, मौन उदासी के साए में गुजराती हूँ जिंदगी


नर की जन्मदात्री होकर भी कैद हूँ नर की मुठ्ठी में

मुझ जैसी नारियाँ ही धुव्र, प्रह्लाद की माँ हैं

बनी रिश्तों की यह अर्थी कहने को जिंदा है जिंदगी सी

नेताओं के वादे भी कागजी हैं

प्रशासन, सरकार भी नाकाम होता

बने इन दरिंदों, दुष्कर्मियों के लिए कठोर कानून

जिससे आधी आबादी का आकाश

शोषण से बचे

विकास देश का कर सके 


लेकिन 

भूल जाती हूँ मजबूरियों के जख्म 

जीने की चाह में लगाती हूँ मन घावों पर मरहम

नयी सुबह बन के सँभालती हूँ घर -गृहस्थी 

बन जाती हूँ अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, सरस्वती, कल्याणी

इसलिए 

नारी को सम्मान दे दो 

नारी मूर्ति नहीं इंसान है 



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