नाम
नाम
एक दिन अंदर से टूट कर बैठ गई
पूछती थी अपने आप से
अपने आप को क्या करके बैठ गई
उस वक्त से पूछती हूँ मैं
उसके साथ को क्यों खो कर बैठ गई
आसान नहीं यूँ उसके साथ के बिना रहना
क्यों मैं उसके लिए अपने आप को गंवा कर बैठ गई
सम्भाल कर रखना चाहती हूँ उस रिश्ते को
जिसके लिए मैं अपना सब कुछ हार कर बैठ गई
याद अब भी बहुत आती है उसकी
क्यों उसके लिए अपनी आँखों को नम करके बैठ गई
कुछ लोग पूछते हैं उदास क्यों रहते हो
क्या कहूँ मैं उन्हें
मैं अपनी ज़िंदगी उसके नाम करके बैठ गई