न चाहत, न अरमान
न चाहत, न अरमान
वो आए
मेरी जिंदगी में बसंत की तरह
दिन सुहाने, रात हसीन हो गई
लगा जिंदगी बहुत खूबसूरत है
बचपन की नादानियां
अब याद आती नहीं
उनके आगोश में सारा जहां
सिमट आया
मेरी दुनिया स्वर्ग हो गई
न कोई चाहत, न कोई अरमान
न अपनी सुध, न जमाने की खबर
ऋतुएं तो आती है, जाती है
और एक दिन अचानक
मेरी जिंदगी में गरमाहट आ गई
जब बसंत ने फरमाईश कर दी
मुझे बचाना है तो
वातानुकूलित मशीन ला दो
बस तभी से
दिन लाल और रात काली हो गई
और अब लाली से भागते-भागते
जिंदगी कब काली हो गई
पता ही नहीं चला
अब वो भी चले गए
और अब जिंदगी के सफर में
अकेले चले जा रहे है
काश, फिर न आए कोई
मेरी जिंदगी में बसंत की तरह।