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Jyoti Agnihotri

Drama

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Jyoti Agnihotri

Drama

मुस्कान

मुस्कान

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उस दरिद्रता में भी मुस्कान खेल गई,

गर्माहट रिश्तों की साधनहीनता को झेल गई।


उस सर्द रात में वो छोटी-सी

आग ही काफी थी,

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाने के लिए,

माँ की भीनी-भीनी मुस्कान ही काफी थी।


माँ तन पर निर्धनता का बोझ लिए बैठी थी,

मगर नहीं मन में कोई संकोच लिए बैठी थी।

उस विपन्नता में भी वो मेरी,

श्रद्धा और विश्वास का वास लिए बैठी थी।


न थी उसमें वादों की नुमाईश,

थी बस निश्छल सी ख्वाहिश।

हर दिन मेरी नई फरमाइश,

न जाने उसने कैसे झेली थी।


हर गम अपना ठेलते हुए,

मुस्कुराती हुई वो मेरे पास बैठी थी।

मेरे उन्मुक्त हास के लिए,

न जाने अपने कितने ,

सन्ताप छिपाये बैठी थी।


मुझमें ही वो अपना सारा

संसार सजाए बैठी थी।

उस सर्द रात में भी वो मेरे पास

मुस्कराई सी बैठी थी।


उस सर्द रात में वो छोटी सी

आग ही काफी थी,

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाने के लिए

माँ की भीनी भीनी मुस्कान ही काफी थी।


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