अब तुम
अब तुम
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दग्ध हृदय के स्तब्ध क्षणों को,
कैसे अब तुम स्निग्ध करोगे
विगत हुए हैं जो मधुक्षण,
बोलो कैसे अब तुम ,
उनको स्मित में भरोगे?
विछिन्न हो चुकी लालसाओं को,
बोलो कैसे अब अभिन्न करोगे?
विगत कई बार तो क्या
आगत को भी क्या खिन्न करोगे?
दग्ध हृदय के स्तब्ध क्षणों को,
कैसे अब तुम स्निग्ध करोगे?