यूँ ही
यूँ ही
कभी कभी यूँ ही ख़याल आता है,
है हिसाब जब हर बात का तो,
क्यूँ बेबात यहाँ हर शख़्स रह जाता है।
है आरज़ू ये हर दिल की,
कि कोई गिला ना रहे,
फ़िर क्यूँ हर शख़्स यहाँ,
अपने ही ज़ख़्म सहलाता है।
कभी-कभी यूँ ही ख़याल आता है,
है ख़ुश नसीब हर शख़्स ,
तेरी नेमत से जब इस दुनिया में,
तो क्यूँ हर शख़्स यहाँ,
अपनी ही बदनसीबी का गीत गाता है।
कभी-कभी यूँ ही ख़याल आता है,
रोके आता है हर कोई ,
और फ़िर इक रोज़ हर शख़्स ,
यहाँ सबको रुला जाता है।