"मुस्कान का जादू "
"मुस्कान का जादू "
कुछ वो हमारे थे , कुछ हम उनके थे
चार दिन नज़र न आये , तो रास्ते बदल लिए !
अँधेरा था , मगर रौशनी कहीं छिपी थी
चाँद तो था , पर चांदनी लापता थी !
उसकी एक मुस्कान के लिए दर्द हज़ार सहे ,
ग़मों ने किया घेरा , फिर न आया सवेरा !
रुक सी गयी सांसें , थम सा गया आसमां जहाँ का ,
पर यक़ीन डगमगाया नहीं था उसका !
और एक रोज़ , फिर सवेरा हुआ!
उसकी मुस्कान में वो रौशनी थी
जिसने , सब कुछ बदल दिया !
उसकी हंसी में वो शक्ति थी ,
जो उसके दुखों को छीन लायी !
उसने ज़िंदगी को फिर से सजाया ,
और हर दर्द को, मुस्कान में समाया।
