“ बारिश में तुम “
“ बारिश में तुम “
बारिश की कुछ बूँदें जब टिप-टिप यूँ तुम पर गिरती हैं,
तुम्हारी ख़ूबसूरती तब और निखर कर आती है।
चारों तरफ़ हरियाली का मौसम जब छा जाता है,
तुम्हारी मुस्कुराहट मुझको उसमें नज़र आती है।
फूल, तितली और कलियाँ सब यूँ खिल जाते हैं,
मानो तुमसे मिलने को बेताब हों।
यह सब देख मचल उठता हूँ मैं भी,
और तुम्हें बाहों में लेने को जी चाहता है।
बहुत खूबसूरत हो तुम उस चाँद की तरह,
जिसकी चाँदनी अकसर रूह को सुकून दे जाती है।
तिलमिला उठता हूँ जब तुमसे मिलता हूँ,
मानो जन्मों-जनम का बिछड़ा यार मिल गया हो।
उस शिखर की चोटी की तरह हो तुम,
जिसे छूने को हर कोई मचलता है।
समंदर से भी गहरा प्यार है तुम्हारा,
जिसमें डूब जाने को हर लम्हा तैयार रहता हूँ।
आसमाँ से आई एक अनमोल परी हो तुम,
जिसके साथ हर सफर में उड़ना चाहता हूँ।
बस यही है मेरे दिल की पुकार—
इस प्रकृति की तरह तुम्हें देखता हूँ,
जिसमें हर एक पल में ज़िंदगी जी जाता हूँ।

