मुसाफिर
मुसाफिर
कुछ कही कुछ अनकही बातें होती थी।
कानपुर परेड की सकरी राहें होती थी।
खचा खच भीड़ से जब मैं गुजरता था।
और उनका हाथ मेरे हाथों में होती थी ।
कभी कभी मैं बातों बातों में कह भी देता था।
यार ये हाथ मेरे हाथों से कभी छूटेगा तो नहीं।
उसने भी नाराज होकर कह दिया भरोसा नहीं है
जो तुम बार बार ये सवाल मुझसे करते रहते हो ।
तन्हाई का इतना डर है तो प्यार क्यों करते हो।
दोस्त की तरह रहो तो अच्छा है ये बात सच्चा है।
क्योंकि विद्यार्थी जीवन मुसाफिर की तरह होता है।
कभी इस शहर कभी उस शहर हमारा ठिकाना है।।
क्योंकि जीवन में अपने मंजिल को जो पाना है।
इसलिए दोस्ती करो पर दिल न किसी से लगाना है। ।
नौकरी होगी शोहरत होगा तो दोस्त भी पहचानेंगे।
अगर ये शोहरत नहीं तो रिश्तेदार भी दूर होंगे। ।
उस दिन मेरी आंखें खुल गई प्रेमजाल दूर हुआ।
वो भी दूर हो गये मेरे नजरों से हमेशा के लिए।।
पर उसकी दी गई हर सीख मेरे जीवन की ।
सबसे बड़ी और सबसे अच्छी शिक्षा थी। ।
एक दिन पेपर में पढ़ा उनका भी काम।
देश के सबसे बड़े पद पर था उनका नाम।।
और यहाँ किस्मत कुंडली मार के बैठ गयी।
कोशिश तो मैंने भी बहुत ही ज्यादा की।
कुछ नौकरियां तो मिलते मिलते छूट गयी।
और कुछ मिली तो किस्मत मुझसे रूठ गयी।।
बस यूँ कहिए जिन्दगी बैसाखी पर नहीं आयी।
जिन्दगी मेरी बड़ी मुश्किल से है बच पायी।।
बस कुछ कविता कुछ कहानियाँ लिखता हूँ।
हाँ जनाब मैं वही कहानियों का मुसाफिर हूँ।
और आजकल वेबसाइट पर भी बिकता हूँ ।।