जिम्मेदारियां
जिम्मेदारियां


काश हम परिन्दों की तरह आजाद होते।
कहीं दूर गगन के सागर में उडते रहते। ।
न कोई जिम्मेदारी होती न ही कोई संकोच।
न कोई कहने वाला होता न होता कोई सोच। ।
लेकिन अब क्या करें अब तो कुछ करना पडेगा।
परिवारिक जिम्मेदारियों को बिलकुल ढोना पडेगा ।।
कभी-कभी तो बचपन याद आ ही जाता है।
वो आजादी के वो पल याद आ ही जाता है। ।
जब हम गिरते और सम्भल जाते पीछे एक सहारे से।
वो किसी और का नही बल्कि माँ बाप का सहारा था।।
वो खिलखिलाता चेहरा वो हर शाम हमारा था।
फिक्र कोई ना गम कोई न हर पल शाम हमारा था।
माँ की गोद सुहानी लगती पापा का प्यार भी प्यारा था।
छोटे बड़े खेल खिलौने सिर्फ अपना घर ही प्यार था।।
याद है बचपन की वो यादें जब पापा अपने कन्धों पर।
जब मुझे कहीं घुमाते थे सबसे प्यारा था घोडा बनना ।
र
ूठ जाने पर मुझे मनाना झूम झूम कर गाते थे।
प्यारी प्यारी लोरी गाकर अच्छी नींद सुलाते थे।
एक दिन ऐसा भी आया सारी खुशियाँ हवा हो गयी ।
जब पापा रूठ कर तारों में अपनी जगह बना ली।
आ गयी सारी जिम्मेदारी टेंशन ने अब जगह बना ली।
सारे सपने सपने रह गये जिन्दगी हो गयी एकदम खाली।।
लेकिन छोडो दुनियादारी अब काम दोहराना था।
अपने बच्चों मे हमको पापा के रूप आना ही था।।
जब आयी सारी जिम्मेदारी तब मैंने जाना।
पापा के ऊपर भी थी जिम्मेदारी ये मैंने माना।।
फिर भी उनके चेहरे पर शिकन ना कोई रहती थी ।
अन्दर से कष्ट भरा था पर चेहरे पर खुशीयां रहती थी।।
सोचो दर्द भरा था पापा के इस जीवन में।
वही कष्ट और वही दर्द आज है मेरे जीवन में।।
अब समझ में आया आसान नही परिवार चलाना।
पर मैं भी पापा की तरह अपने कर्म निभाऊंगा।।