दिल कहता है
दिल कहता है
तू कहता है ऐ दिल की तू सब्र कर मेरे मालिक।
मैंने हर दर्द हर जख्म दम भरकर सब्र किया।
तूने कहा ऐ दिल की फिक्र न कर मेरे मालिक।।
मैंने फ़िक्र को भी पूरबी हवा में उड़ा दिया है ।
पर अब मैं बेहद टूट चुका हूँ मेरे दिल।।
अब सब्र भी नहीं इस जख्म और दर्द का।।
और रात की नींद में फ़िक्र भी काफी रहता है।।
नींद आती नहीं दिल खुल कर रो भी नहीं पाता।
क्योंकि तू बेदर्द दिल जो मेरे अन्दर बैठा है।।
अरे खुल कर रो तो लेने दे मेरे दिल।।
कब तक तू समझायेगा मेरे दिमाग को।।
क्योंकि तू अंधा है न, तेरा काम तो रक्त साफ करना है।
और मैं तो अपनो का दर्द देखता हूँ महसूस करता हूँ।।
उसके बारे में सोचता हूँ की कब अपनो का दर्द दूर होगा।
क्या मेरी तरह उसका दिल भी उसे समझाता होगा।।
मुझे बहुत रोना आता है है जब कोई अपना दर्द में हो।
और तब जब वह दुनिया में चंद दिनों पहले आया हो।।
कैसे बयां करेगा वो अपने दिल की बात।
कैसे बतायेगा अपना वो हर दर्द हर बात।।
ऐ दिल बस इतना कर दे भगवान से प्रार्थना कर।
की मेरा नन्हा दोस्त सलामत रहे महफूज रहे।।
फिर मैं तेरी हर बात मानूंगा, सब्र भी कर लूंगा।।
हर फिक्र को दूर कर, पूरबी हवा में उड़ा दूंगा।।