मुकम्मल हो गई
मुकम्मल हो गई


पहली दफा चाय पे मुलाकात सी हो गई जैसे
ना जाने उनसे खामोशी में भी गुफ्तगू सी हो गई
हुकुक न था हमारा उनसे ऐसे निस्बत रखना
ना जाने उनकी तबस्सुम पर भी फरह सी मिल गई
उनके आने से पहले तो हम वाहिद से थे
ना जाने उनकी बसर से हम कातिब से बन गए
हमारा आलम तो जैसे खिर्जा हुआ सा था
उनके आने से जैसे बहिश्त सा हो गया
ज़िन्दगी में हम तो जैसे जुल्मत के जनाब थे
मुमताज जैसे मोहतरमा ने आ कर शरर सा कर दिया
उनकी अजमत थी हमसे गुफ्तगू करना लेकिन
तिफल से चेहरे से हमारे होंठों को मसर्रत मिली
पोशीदा सी इन मुलाकात ने हमें तखय्युल में रखा
ना जाने उनकी इस इशितराक में हमें हमनफस मिल गया
उनके आने से बस हमारी मोहब्बत का आगाज़ हुआ
ना जाने उनकी जमाल से हम मुकम्मल से हो गए