मुसीबतमुसीबत
मुसीबतमुसीबत
दिन मुसीबत के जब गुजर जाते हैं,
खोए हुए दोस्त, रिश्तेदार सब नजर आते हैं।
रख धैर्य, खाकर ठोकरें, गरीब भी निखर जाते हैं,
दिन जैसे भी हों आखिर गुजर जाते हैं।
नफरतें, जलीलें, ठोकरें रहती हैं अपनों की याद सदा,
बिछुड़े थे जो, जब मिलने आते हैं।
बहुत कुछ सिखा देता है वक्त इंसान को,
जब अपने भी पराये रंग दिखाते हैं।
गिरना किसी की नजरों में होता है कबूल किसे,
मगर गुरबत भरे दिन यह सब दिखलाते हैं।
समझ कर चलते हैं, मुसीबत में जिनको अपना,
वोही मुहँ फेर कर चले जाते हैं।
झूठ, फरेब से भरी है, दूनिया सुदर्शन,
खाली जेब में सब पराये नजर आते हैं।
इंसानियत की डोर हो रही है खत्म सुदर्शन,
भरी जुबानी में, बूढ़े मां बाप कहाँ नजर आते हैं।
मत भूलो हकीकत है यह,
भले बुरे दिन अक्सर आते जाते हैं।
बचपन, जुबानी, बुढ़ापा सच है अगर, फिर क्यों
इंसान, इंसान से टकराते हैं।

