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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

जज्बात

जज्बात

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18



लिखते लिखते न जानें कितनी बातें लिख डालीं, 

बहती हुई आँखों की बरसातें लिख डालीं। 


आसान नहीं था जिन बातों को लिखना,

कुछ होश में कुछ जज्बात में लिख डालीं। 


देती रही परछाई सूरज की रोशनी में साथ मेरा, 

तन्हा रह कर घोर अंधकार में न जाने कितनी बातें लिख डालीं। 


न मुमकिन था भरी मुस्कान होठों पर लाना, 

गमगीन याद में किसी की न जाने कितनी बातें लिख डालीं। 


खो जाते अनजाने में रास्ते तो अफसोस न होता,

हासिल होकर भी न मिली जो सौगातें सब लिख डालीं। 


लिखते लिखते थक जाते लम्बे अफसाने कुछ लोग,

हमने तो कई कतारों में दास्तानें लिख डालीं। 


बाहर से तो दिखते हैं सब आपने सुदर्शन,

मन में उनके क्या था सब यादें लिख डालीं। 


हीरे की परख जौहरी ही जाने, बिन परखे होकर अन्जान भी न

जाने कितनी शिकायतें लिख डालीं। 


बेदर्द जमाना क्या जाने दिल के मरहम को,

बेवसी की विदाई में कितनी मुलाकातें लिख डालीं। 


अपना पराया कौन किसी को समझे सुदर्शन, अपनों ने लड़ते, झगड़ते

महाभारत की कितनी कथाएँ लिख डालीं। 



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