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V. Aaradhyaa

Romance

4.5  

V. Aaradhyaa

Romance

मेरे सपनों का वो घर

मेरे सपनों का वो घर

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मेरे शांत हृदय में हलचल कर देती है याद तुम्हारी।

हँसती आँखों में गंगाजल भर देती है याद तुम्हारी। 


जब लगता है टूट रहा हूँ पास मेरे धीरे से आकर,

सम्बल भरा हाथ काँधे पर धर देती है याद तुम्हारी। 


यार मिलेंगे? नहीं मिलेंगे? नहीं मिले तो क्या होगा फिर?

मन को कितने ही प्रश्नों से भर देती है याद तुम्हारी। 


कठिन डगर पर चलते चलते थककर जब भी गिर जाते हैं,

उठकर फिर से दम भरने का स्वर देती है याद तुम्हारी। 


कभी तो' आकर मधुर मिलन के मीठे मीठे ख़्वाब सजाती,

किंतु कभी खो देने का भी डर देती है याद तुम्हारी। 


बैठे बैठे जाने किस से बतियाने लग जाते हैं हम,

इस पागल को और भी पागल कर देती है याद तुम्हारी। 


साथ तुम्हारे इन आँखों में वर्षों से हूँ जिन्हें सजाए,

मुझको मेरे उन सपनों का घर देती है याद तुम्हारी।



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