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Saleha Memon

Romance Tragedy Fantasy

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Saleha Memon

Romance Tragedy Fantasy

मोहब्बत

मोहब्बत

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बिस्तर को दफा कीजे मेरे दिल के घर से,

अब तो नींद भी आने लगी हैं माशूक ए फुरकत में।


गिले तो बहोत हैं तुझ से,

मगर ख्याल सारे आने लगे हैं तेरी हिमायत में।


फरेबी तो थे हम जिस्मानी प्यार के,

मगर तुझ से रूहानी इश्क है तेरी अदावत में।


शिकवे तो सारे जहन संभाल रखे थे,

मगर रूह ना शामिल हैं तेरी शिकायत में।


रूठते तो है हैं अब भी तुझ से,

मगर बाद ए हिज्र यही हमारी मुरव्वत हैं।


इश्क की तामीर जो हुई बाद ए वस्ल तुझ से,

चिराग जलने थे, चिराग नहीं, आग लगी उसी इमारत में।


मयखानों की ख्वाहिश , जो तुझे ना पसंद हैं,

तेरे बाद वहां हमारा ज्यादा जाना है शरारत तेरी याद में।


सोचता हूं खुद के साथ वक्त गुज़ार करने , बैठने में,

मगर क्या गुफ्तगू करू तेरे बाद के अंधेर से खल्वत में।


जो हुआ करता था `मैं ' , अब शायद नहीं रहा वो ' मैं `,

कौन कहता है मैं नहीं बदलता या खुदा नहीं मिलता

 शहर ए मोहब्बत में ।



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