मुझे ये मालूम ना था
मुझे ये मालूम ना था
मैं तो सपनों को पाने ही चला था,
राह होगी ऐसी,
मुझे ये मालूम ना था...
निगाह में बस मंजिल थी,
गुजरना है आग-ए-दरिया से,
मुझे ये मालूम ना था...
मैंने सपनो को पाना,
फूलों का मंजर समझा,
मिलेंगे बस कांटे,
मुझे ये मालूम ना था...
टुटा, बिखरा, गिरा राह में,
पर निकल आया आगे कैसे,
मुझे ये मालूम ना था...
कोई ताकत थी वो,
मेरी आशाओं, मेरी साँसों को थामें थी वो,
मेरे अन्दर ही थी वो,
मुझे मालूम ना था...
मेरी शाम थी ऐसी, रात होने पर ही डर लगता था,
चाह थी, रात ही रात रहे, क्यूंकि कैसा होगा सवेरा –
मुझे मालूम ना था...
सवेरे ही मिलेगी मेरी मंजिल मुझे, मेरा सपना
यूँ ही डरता था इसके आने से, क्यूँ
मुझे मालूम ना था...
अरे, चले तो कोई, लड़े तो राहों से,
मिलेगी मंजिल, वो कल था
जब
मुझे ये मालूम ना था...