मुझे शर्म आती है
मुझे शर्म आती है
कितने कितने फरेब देखे इस दुनिया में
इस दुनिया के हालात पे मुझे शर्म आती है
बादशाहत से जीने वाले वो बुजदिल ही होंगें
उन बेदर्द बुजदिलेे हयात पे मुझे शर्म आती है
कपड़ों से नहीं वो चमरी से चिथड़े थे
आलिशान महलों केे सजाने पे मुुुझे शर्म आती है
लाखों लाख बेेेघर जब भूख से बिलख रहे थे
झूठी आस्था के उन खजाने पे मुुुझे शर्म आती है
मंदिरों के नाले मेें बहा दी गई दुध की नदियाँ
बेबस माँ के उस बालक के चित्कार पे मुझे शर्म आती है
सड़क पर भागती वो कार जब रोके न रुकी थी
उस बेबस लड़की के बलात्कार पे मुझे शर्म आती है
कर्त्तव्यों को ताख पे रखकर जो मांंगे अपना अधिकार
वैसे बेेबस माँ बाप के निश्छ्ल प्यार पे मुझे शर्म आती है
एक गर्भवती की जुबां पर जिस बहसी ने किया प्रहार
उस दरिन्दे की शिक्षित संस्कार पे मुझे शर्म आती है।
