STORYMIRROR

Deepika Sahu

Action Inspirational Others

4  

Deepika Sahu

Action Inspirational Others

मुझे बहु नहीं बेटी मानो

मुझे बहु नहीं बेटी मानो

1 min
262

सिर पर ओढ़नी लिए सात फेरे लगाती हैं

दो परिवार को एक साथ वो जोड़ने चली जाती हैं

कैसे वो एक परिवार को हँसा जाती है

और एक के आंसुओं की घुट पी जाती है

सजने संवरने खुद को अपना परिवार मानती हैं

सबकी मर्जी से ही खुद को राजी बदलती है

सबको बराबर हक देकर सब का भोजन बनाती हैं

न लगे किसी को बुरा ये सोच - सोच वो बहुत घबराती  हैं

सब के खुशी में अपनी खुशी पाती हैं

सात फेरे के वादों को सात जन्म निभाने की बात बताती  हैं

जो मायके में बेटी कहलाती है वो उड़ती हैं चिड़ियों की तरह

सब को खुशियों की फुलझड़ी दे आती है

सम्मान, अधिकार सब पर बराबर का हक होता हैं उसका

सब रिश्ता वो निभाती है

जो मायके में मिला प्रेम वो ससुराल मे नहीं बाट पाती हैं

इच्छा होती हैं मायके के रखरखाव और प्रेम सब ससुराल को सौंप दूँ पर

ससुराल में उसे बेटी नहीं बहु मानते हैं

क्या फर्क बेटी, बहु में वो भी तो तुम्हारा घर संवारती है

जिस नजरिया से बेटी को देखते हो बहु को भी देखो न

ये जिंदगी उसकी भी कीमती हैं बहु नहीं बेटी मानो न

एक बहु कभी नहीं कहती मुझे बहु नहीं बेटी मानो

पर एक बेटी ये जरूर कहती है अपने ससुराल वालों से मुझे बहु नहीं बेटी मानो!!! .....


         


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action