कब तक बोलो सह पाओगी।
कब तक बोलो सह पाओगी।
विधा-सुगत सवैया
पुरुषों की वीभत्स निगाहें, कब तक बोलो सह पाओगी।
हैवानों के बीच कहो तुम, कहाँ सुरक्षित रह पाओगी।
घाव किये कितने तन-मन पर, चीख कहाँ कोई सुन पाया।
वस्त्रहीन कर नोंच नोंच कर, नारी का अस्तित्व मिटाया।
बेलगाम अपराधी जग में, तुम यूँ ही जलती जाओगी।
हैवानों के बीच कहो तुम, कहाँ सुरक्षित रह पाओगी।
दुष्कर्मी को सजा हुई कब, ना पेशी ना सुनवाई है।
नर के हाथों छल प्रपंच में, नारी ही छलती आयी है।
निर्भय कर दो शत्रुदलन अब, कब तक यूँ छलती जाओगी।
हैवानों के बीच कहो तुम, कहाँ सुरक्षित रह पाओगी।