मैं लड़की हूँ
मैं लड़की हूँ
मैं लड़की हूँ !
माँ की दुलारी, पापा की प्यारी हूँँ।
मैं लड़की हूँँ !
मैं वो बंद किताब हूँँ
जिसे लोग बिना पढ़े
अपनी राय दे जाते।
मैं वो हूँँ जिसे कोई बिना जाने
सब कुछ कह जाते।
फिर भी हसकर सब भूल जाती
मीठी मिश्री सी घुल जाती।
फिर भी हसकर सब भूल जाती
मीठी मिश्री सी घुल जाती।l
है सबकी उमीदो से भरी मेरी जिंदगी
किसी को क्या कहना, लड़की हूँँ ना
मुँह बंद रख, सब सेह लेना।
फिर भी ऐसा लगता पँख फैला उड़ जाऊ मैं।l
फिर भी ऐसा लगता पँख फैला उड़ जाऊ मैं।l
पर ज़माने की वो बेरिया
और डर की वो हटकरिया
चाह कर भी ना तोड़ पाउँ मैं।
चाहे अच्छी बुरी जैसी भी हूँँ
आखिर लड़को की तरह
एक ही कोक से,मैं भी जन्मी हूँँ।
फिर भी हमेशा लड़ लड़कर
क्यूँ जीना पड़ता मुझको
लड़की ही तो हूँँ ना
फिर क्यूँ नहीं है अधिकार मुझको।
फिर क्यूँ नहीं है अधिकार मुझको।