सुप्रभात
सुप्रभात
सुप्रभात ! कहते ही
सुबह की वो प्रकितिक सौंदर्य का एहसास होता है।
जब हम सुबह - सुबह शेर मैं निकलते है
और वो ठंडी सी हवा का झोका
जो की हमें छू कर निकलती है।
जिसके स्पर्श से मानो, इतनी खुशी होती है
की जैसे पूरा दिन ऐसे ही निकल जाये
और वो हरयाली पेड़ जो हवा के साथ
झूम रही होती है मानो,
उसे सुबह का ही इंतजार हो
जब आसपास सब तरफ
सुकून सा एहसास होता है।
ना गाड़ी की वो ढोर भाग, ना तो वो शोरगुल
बस वो चिड़ियों की चहकती आवाज,
जो की मानो ----
<p>इस खूबसूरत सुबह मैं, कोई सुरीली धुन हो।
पर फिर भी यह सब, महसूस करने के बाद बुरा
इस बात का लगता है की ----
आज के इस दौर मैं
हम इंसान अपने जरूरत के पीछे
भागते - भागते अपने बनाये
इस इलेक्ट्रॉनिक दुनिया मैं कही,
वो प्रकितिक सुंदरता खोते जा रहे है।
और हम इतने ही व्यस्त हो गए है खुद मे,
कि जिस प्रकृति ने हमें इतना कुछ दिया,
उसे बरकरार रखने का समय ही नहीं
हमारे पास, और इसलिए।
शायद ही हमारी आनेवाली पीढ़ी
इस अद्धभुत सौंदर्य का आनंद ले पाए।