सिर्फ तू
सिर्फ तू
मन किया लिख दूं तुझे ही अब मैं
सब बयां कर दूं तुझे
तब सोचना ही क्या इतना था
देखना तू एक दिन मुझे,
तू जो यहीं थम सा गया
कह दे वो जो है दरमियान
कागज में तुम, कलम में भी तुम
लिखूं तुम्हें ही मैं सारा
ये लफ्ज़ जो छप जाए तो
क्या चांद और क्या है तारा
कागज में तुम, कलम में भी तुम
लिखूं तुम्हें ही मैं सारा.....
गुमराह सी मैं चली थी
कोई ना साथ मेरे था
थी जो चाहत तुम्हारी
यादों का वो सिलसिला था ,
मैं जो तुझे ना जीत सकी
होना ही है अब तो जुदा.....
कागज में तुम, कलम में भी तुम
लिखूं.....
दिल में हो तुम....(अरमान मलिक)।

