मगरूर
मगरूर
ये उंचे पहाडों के मगरूर साये
ये कहते उनको नजर तो मिलाये
फरिश्ते भी हैं इस जगह बेजुबां
हाय ये खामोशियां की तन्हाईयां
न परदा हैं कोई न हैं कोई चिलमन
कदम छोडते जा रहे हैं निशां
बनाली थी हमने तो जन्नत यहां
हाय ये खामोशियां की तन्हाईयां।
