रूठे
रूठे
तेरे हाथों से लिखी तक़दीर ना छूटे
मालिक मेरा तू कभी ना मुझसे रूठे
सजायें मौत मुझ को दे क़बूल है मान ले
जान है तू मुझ से कभी भी ना छूटे
लहू बन के दौड़ूँ पंथ कहीं ना छूटे
आज़ाद करूँ कैसे साँस है तू ना रूठे
सुर्खियाँ लबों की जलन ना छूटे …
न बोलूँ तो जले जिया, और बोलूँ तो जला रूठे
परेशान ना कर रे ख़ुदा कहीं तू ना छूटे
तुझ से तेरा छूटे अगर हम जो रूठे !!