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Rekha Shukla

Tragedy

3  

Rekha Shukla

Tragedy

ज़ख़मी सांसे !!

ज़ख़मी सांसे !!

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माँ अत्तित्व की पहचान थी 

केन्सर जीता मरने न देता था 

केश से ऐश का सफ़र था 

केश झरने लगे किमो था 

सब सेहती गई माँ जो थी 

तो चलते ही जाना था 

ऐश होगा शरीर ही था 

अमीर नहीं माँ ग़रीब थी 

लाचारी से पीड़ित थी 

और बेटा बदनाम था 

किस शिक्षाका नौकर था 

पापी पेट की ग़ुलामी थी 

रोज़ रोक टोक ही थी 

परपोते से लगाव रहा था 

वो बड़ा ही समझदार था 

दादी से दिल लगाया था 

नाटक ख़त्म होना ही था 

ज़रूरत का सवाल जो था 

दुनिया में यही होता था 

होता रहेगा जबतक़ जान थी 

मुझे ज़िंदगी देने की सजा थी 

ईश्वर का एक सहारा था 

पर क्या उसे वो पसंद था 

ज़िंदगी ख़त्म थी सॉस बाक़ी थी।


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