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Renu Sahu

Abstract

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Renu Sahu

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वो कौन थी ?

वो कौन थी ?

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शांत शीतल नाज़ुक थी

चंदन जिसका पर्याय बने

गुस्सैल कहे जिसे जग सारा

मेरे लिए सदा जो ढाल बने


कोई कैसे इतना परिपूर्ण है ?

मन ना समझ ये पाता था

उसकी तारीफों पे, कुढ़ती मैं सामने

अंतर्मन सजदे मे शीश झुकाता था।


कैसे बिना ना नुकर किए

बड़ो की आज्ञा पालन करना

और छोटों को बाट सबकुछ

हरिश्चंद्र सा दानी बन जाना।


ऎसे विशाल व्यक्तित्व की धनी

उम्र तो बहुत छोटा था

सपने आकाश छुने के थे

माँ सी ममता पिता सा संबल था।


पुचकारती ममता दिखलाती

समर्पण से हमे समेटी थी

पिता का गुरूर, दादी की लाडली

माँ की छवि, वो मेरी दीदी थी।


बनी प्रेरणा मेरे बढ़ने का

मेरे अस्तित्व की जो

बुनियाद रखी

पाक हृदय निश्छल

नेहा (स्नेह, प्यार) ने

रेणु (मिट्टी) से गगन

(आकाश) तक दुनिया रची।


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