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Rani Kumari

Action

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Rani Kumari

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मैं प्रेमी जन्मभूमि का

मैं प्रेमी जन्मभूमि का

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सच्चा सपूत हूँ मैं माँ का

श्रद्धा से शीश झुकाता हूँ।

मैं प्रेमी जन्मभूमि का

हँसकर सीमा पर मिट जाता हूँ।


बर्फीली हवाएं, दुर्गम राह

जरा नहीं मुझे परवाह।

ये तिरंगा न झुकने पाते

बस इतनी-सी अपनी चाह।


कर तिलक वो भेजती सरहद पर

जोश से मैं भर जाता हूँ।

लड़ता हूँ, भिड़ता हूँ

फिर तिरंगे में लिपट जाता हूँ।


भीड़ उमड़ पड़ती है गाँव में

बेटा तिरंगे में लिपटा आया है।

दबाकर दर्द सीने में कहती माँ भी

लाल मेरा जन्मभूमि के काम आया है।


चार कंधे की बात क्या ?

सैकड़ों पर उठाया जाता हूँ।

मैं प्रेमी जन्मभूमि का

हँसकर सीमा पर मिट जाता हूँ।


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