परिवर्तन
परिवर्तन
ओ ! बसंत
तुम तो
सर्दी दूर भगाते हो
रवि-रश्मियों में गर्मी लाते हो
कलियाँ भांति-भांति खिलाते हो
हरियाली से धरा को सजाते हो
फूलों में मकरंद भरते हो
हवाओं में सुगंध घोलते हो
प्रकृति के कण-कण का
नव-शृंगार करते हो।
ओ! बसंत
कभी भटके हुए
भारत माँ के लाल के
हृदय में भी
राष्ट्रप्रेम के भाव जगा दो
आपसी रंजिश
बैर भाव मिटा दो
स्नेह और भाईचारे की
निर्मल नदी बहा दो
नफरतों की सारी
जड़ें काट दो।
मिलजुल रहें
आपस में सब भाई-भाई
सुरक्षित रहें
घर की बहन-बेटियाँ
पुनर्जिवित हों इंसानियत
प्रबल हो विश्व बंधुत्व की
भावना
ओ! बसंत
कुछ ऐसा परिवर्तन का
तुम चक्र चला दो।