जो तुम नहीं
जो तुम नहीं
यूँ तो
इस बहार के मौसम में
है हरी-भरी वादियाँ
फूलों से लदी झाड़ियाँ
पर सुनो !
मेरे मन की गली में
छायी है विरानियाँ
जो तुम नहीं।
हवाओं की सरसराहट
पंछियों की चहचहाहट
नवपल्लवों की मुस्कुराहट
भौंरों की गुनगुनाहट
पर सुनो !
मुझमें एक छटपटाहट
जो तुम नहीं।
पतझड़ या बहार
शरद, ग्रीष्म या फुहार
आते-जाते बारंबार
प्रकृति का करते शृंगार
पर सुनो !
मैं बेरंग और बेकरार
जो तुम नहीं।

