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Shubhendra Gupta

Romance

4.7  

Shubhendra Gupta

Romance

उस वक्त

उस वक्त

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तुम दिखीं जैसे टॉफी के लिए रोता बच्चा,

तुम मिलीं जैसे सूरज की किरण

मिलती है समंदर के ठहरे पानी से।


यकीनन तुम साथ रहीं,

जैसे परछाई चलती है साथ।

तुमने खूब बातें की,सवाल पूछे,

बहस भी की,जवाब भी दिए,

किसी रेडियो शो की RJ की तरह

लेकिन जब मैं खुश था,


तुमको जी रहा था

तब ख्याल ही नहीं आया कि,

टॉफी मिलते ही बच्चा चुप होकर

घर लौट जाता है।


शाम के बाद जब

आमद होती है रात की,

तो सूरज डूबते ही परछाई

दिखना बंद हो जाती है,


और आधी रात के बाद कहाँ

चलता है रेडियो का कोई भी चैनल।

मैं जब तुमको जी रहा था

तब सिर्फ तुमको जी रहा था,


और अब जब तुम मेरे बिना जी पा रही हो,

तो मैं मर भी नही पा रहा।

काश मैं तुमको जीते वक्त,

थोड़ा सा ख़ुद को भी जीने का वक्त देता।


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