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Shubhendra Gupta

Others

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Shubhendra Gupta

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इतवार

इतवार

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हर ज़रूरी काम को

नजरअंदाज़ कर

हर ग़ैर ज़रूरी काम पर,

हफ्ते भर से सोच रखा

एक दिन यूँ ही खर्च कर देता हूँ मैं।


नल की मरम्मत भी करवानी थी,

और राशन भी लाना था।

गैस की टंकी से गैस रिस रही थी,

और एक पुराने दोस्त से

मिलने भी जाना था।


मानो चाँद...जिस पर ज़िम्मेदारी है

चकोर की,भांजों की, महबूब की,

करवाचौथ की..

और हाँ.. ईद की भी।


जैसे इतवार..जो बना है,

बाल रंगने, नाखून काटने,

किताबों की अलमारी साफ करने,

और धूप सेंकने को।


हाँ याद आया,

इतवार ही तो था जिसको

हफ्ते भर से सोच रखा था,

सब ज़रूरी कामों के लिये।


आज दफ्तर जाते सोच रहा हूँ,

कैसे मैने कल का पूरा इतवार,

तुम्हारे पुराने ख़त पढ़ने में

ज़ाया कर दिया।


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