सपने,उम्मीदें और काम..
सपने,उम्मीदें और काम..
एक खामोश चांदनी रात हो,
मेरे हाथों में तेरा हाथ हो,
पुराने वक्त की बात चल रही हो,
और हवा सांसो से भी धीमी चल रही हो।
मैं कहूँ मुझे मोहब्बत है तुमसे,
तुम जवाब में नज़र झुका लो।
और हम पैर पैर अपने घर लौट जाएं।
हाँ.. अपने घर।
ऐसे मेरे कुछ सपने थे तुम्हारे साथ..
मेरी गोल गोल बातों में उलझी रहो तुम,
मेरे अलावा सब शायरों से नफरत हो तुम्हेंं,
जो हवा तुम्हेंं छुए वो कीड़ा बने अगले जन्म में,
और तुम भी उससे जलो जो जलता हो मुझसे..
ऐसी मेरी कुछ उम्मीदें थी तुमसे..
तुम जब कहो मैं मिलूं,
घड़ी से भी ज़्यादा बातें करूँ तुमसे तुम्हारे नेल पेंट के शेड,
सैंडल की डिज़ाइन ,
पिसी इलायची और तुम्हारी साड़ी की फाल ढूंढने से लेकर,
तुम्हारे लिए भंडारे का खाना लाने तक या
तुम्हें स्कूल छोड़ने-लेने से लेकर
तुम्हारे एनुअल फंक्शन एंकरिंग की स्क्रिप्ट लिख दूँ।
तुम्हारी तय की गई समय सीमा के भीतर..
तुम्हें ऐसे कुछ काम थे मुझसे..।

