तुझसे मोहब्बत क्यों न हो
तुझसे मोहब्बत क्यों न हो
तेरे इश्क को महसूस करते हैं
हम जब ऑंखें बंद करते हैं
तेरी आवाज़ से कानों में शहद घुल जाता है
मेरी सलामती के ज़िक्र जब तेरे होंठों से होता है
'तुम कैसे हो ,लिखना '
और फिर तेरे शब्दों का न दिखना
झूठ कहते नहीं तुम
और सच बताते नहीं तुम
कल ख्वाब में एक 'परी' देखी
कुसुमित और पुलकित देखी
अदाएं विस्मृत करती थी
उसकी ऑंखें तुम्हारी तरफ इशारा करती थीं
सच और सपने में फर्क समझ न आता था
जब उसका खिलखिलाना बढ़ता जाता था
"कौन है वो ?" - इस प्रश्न का जवाब क्या था
तेरे इश्क का इम्तिहान अब था .
"वो जो तुम्हारे सपनो में आ जाती है ,
मुझसे बेइंतहा इश्क करती थी .
नहीं ,वो अब इस दुनिया में ,
लेकिन प्यार किसी और का न समझेगी अब
सो न पाओगी , जग न पाओगी
मोहब्बत भी मुझसे तुम कर न पाओगी ."
"तुझसे मोहब्बत क्यों न हो ,
कुसूर कहाँ तेरा है ?
तू है इश्क के काबिल ,
तसल्ली रख !
और हम उसकी तुझे पाने की ज़िद्द से वाकिफ !!"
तेरे इश्क को महसूस करते हैं
हम जब ऑंखें बंद करते हैं .
तेरे इश्क को महसूस करते हैं
हम जब ऑंखें बंद करते हैं |

