सीधी बात लोगों को समझ नहीं आती है
सीधी बात लोगों को समझ नहीं आती है
सीधी बात लोगों को समझ नहीं आती है ,
विश्वास की मिठास खो जाती है ,
जब आदत पड़ चुकी हो 'चाशनी ' वाली चाय की ;
तब फिर फीकी चाय में वो बात कहाँ आती है !
दफ्तर में 'साहब ' ने कहा किसी काम के लिए
सीधे मना कर देने में नाक घिस जाती है
चमचागिरी ही रास आती है
अपना काम किसी और को देकर सिफारिशी चिट्ठी लिए बैठे हैं ,
ये वो 'अफसर ' हैं जो अपनी कुर्सी पर अकड़ कर बैठे हैं,
'मुमकिन ' नहीं इनको कुछ भी कह सकना
क्यूंकि #सीधीबात इनको समझ नहीं आती है .
मॉल्स के वाउचर लिए बैठे हैं
कस्टमर डिस्काउंट की चाह लिए बैठे हैं
१०० रुपये के फ्री सामान के चक्कर में
वो क्रेडिट कार्ड के बड़े बड़े 'बिल ' लेकर बैठे हैं
४ किलो के राशन की ज़रूरत थी
लेकिन ४० किलो का स्टॉक करके बैठे हैं
#सीधीबात समझ न पाते हैं ;
ऑफर्स का ज्ञान सिखाते हैं , खपत से ज़्यादा सामान घर ले आते हैं .
#सीधीबात का मतलब इतना था
वो जो मेरा अपना था
मैंने कहा कोरोना है ; इस वक्त न जाओ बाहर
लेकिन उसका कोई मुझसे ज़्यादा अपना था
मिलना ज़रूरी था ;
प्रेम का समर्पण इस वक्त ही जताना था
और , उसको बाहर ही जाना था
मुझसे लड़कर , मुझको गलत समझकर न जाने क्या बताना था
दोस्त ही यूँ गैर हो गया
वो #सीधीबात सुनकर मुझसे दूर हो गया
अब मनाने में वक्त लगेगा
#सीधीबात है कि उसे जताने में वक्त लगेगा
क्यूंकि #सीधीबात आजकल लोगों को समझ नहीं आती है
जब आदत पड़ चुकी हो 'चाशनी ' वाली चाय की ,
तब फिर फीकी चाय में वो बात कहाँ आती है !!