एक वक्त अपना -सा
एक वक्त अपना -सा
कभी-कभी कुछ सुकून से जी लेते हैं
महफ़िल में उनकी शामिल हो लेते हैं
अल्फ़ाज़ों की महक है शामिल,
जज़्बात भी वफ़ा के काबिल,
है मुमकिन-सा याराना अपना
बस, तेरी नज़रें कटती सी मालूम होती हैं
जब भीड़ में शामिल तुम्हारी और भी दोस्त होती हैं
मेरा शक करना मुमकिन -सा है
तेरा बेपरवाह होना फितरत -सा है
मुस्कानों के मिलने का सिलसिला अब कम -सा हुआ
तू यार मेरा, अब कुछ दूर इस कदर हुआ
काश ! वफाओं का पैमाना होता
मुमकिन आपके साथ इक ज़माना होता
कांच-सा था भरोसा अपना, पल भर में बिखर गया
था बहुत खूबसूरत और रंगीन बहुत,
इक पल में छलक गया -
उनका मेरे पास आना, आकर चले जाना
यूँ लगा कि इक ज़माना पल भर में गुज़र गया।