प्रेम
प्रेम
तेरे मेरे शोध का विषय था प्रेम,
मैंने उससे पूछा क्या है प्रेम ?
सब से पहले इस पृथ्वी पर किसने किया ?
कब हुआ कैसे हुआ ?
कैसे की उसने प्रेम की पहचान
कैसे की उसने प्रेम की अभिव्यक्ति
क्या कभी कोई दुख हुआ
उनको प्रेम प्रदर्शित करने में,
क्या कभी कोई सुख जान पड़ा
चरम पर पहुँचने में,
वो नितान्त खामोश रहा
एक पल एकटक गौर से देखा उसे मैंने
उसकी निश्छल आँखों में,
प्रेम ही प्रेम था
ह्रदय में बसी प्रेम की पराकाष्ठा
उसके अधरों पर
मन्द मन्द मुस्करा रही थी।