बालमन को अभिव्यक्त करती कविता बालमन को अभिव्यक्त करती कविता
ह्रदय में बसी प्रेम की पराकाष्ठा उसके अधरों पर मन्द मन्द मुस्करा रही थी। ह्रदय में बसी प्रेम की पराकाष्ठा उसके अधरों पर मन्द मन्द मुस्करा रही थी।
सृष्टि की मार, बस रह जाएगी आपदाओं से एक विरानी ! सृष्टि की मार, बस रह जाएगी आपदाओं से एक विरानी !
लेकर जान मानवता की, पल पल मचल रहा है। वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है। लेकर जान मानवता की, पल पल मचल रहा है। वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
एक तेरे आशीष से माँ, मंच सब शोभित हुए। बिखरे हुए थे गीत मेरे, आज सुसज्जित हुए।। एक तेरे आशीष से माँ, मंच सब शोभित हुए। बिखरे हुए थे गीत मेरे, आज सुसज्जित हुए...
संस्कार के साथ यहीं पर, मर्यादा रहती निष्काम संस्कार के साथ यहीं पर, मर्यादा रहती निष्काम