वह अनदेखा वायरस
वह अनदेखा वायरस
लेकर जान मानवता की, पल पल मचल रहा है।
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
जन्मभूमि से होकर, सर्वत्र फैल गया है
निर्दयी, क्रूर दानव को, बिल्कुल भी नहीं दया है,
मचाकर हाहाकार कोरोना, नित- नित उछल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
दिसंबर माह में उसने, अवतार लिया धरा पर
मानव को उसके कृत्यों का, प्रतिफल दिया धरा पर।
मानव से अब वह संभाले, नहीं संभल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
कहते हैं चमगादड़ उसका, जनक है कहलाता
वुहान के बाजार से, उसका गहरा है नाता
मांसाहार से बचना मित्रों, वह नित-नित उबल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
नित शोध कर्म में उसके, वैज्ञानिक हैं जुटे हुए
नित उपचार में उसके, चिकित्सक हैं डटे हुए
वह संक्रामक है ऐसा, रूहें बदल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
प्रतिरोध क्षमता कम कर, क्षीण कर रहा ताकत
इंसान के जीवन की, घटा रहा है लागत
उसके प्रभावी तेवर से, बच्चा-बच्चा दहल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
ना मिलना, ना जुलना, घर पर ही रहना है
इससे बचने के लिए, अकेलापन सहना ह
दूर रहो सब नजदीकी से, वह दर-दर टहल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
ना लगाओ भीड़ कहीं, ना होवो समूह में इकट्ठा
लाकडाउन का वरना, बैठ जायेगा भट्टा
नहीं आयेगा मत सोचो, वह सर्वत्र फल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
ना बनी कोई टीका, ना बनी कोई दवा है
उपचार उसका केवल, स्वच्छ वातावरण, हवा है
अनदेखे को प्रिये, अनदेखा ना करो
उसके ताप से सारा, भूमंडल जल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।
तुम पालन करो, आदेशों का। केंद्र, राज्य, निर्देशों का
लक्षण दिखें, बीमारी के जब डायल करो, हैल्पलाइन तब
बरतो ना कोई, लापरवाही करो ना कहीं पर,
आवाजाही अज्ञानियों का ना आज था, ना कल रहा है
वह अनदेखा वायरस, दुनिया को निगल रहा है।।