Pawanesh Thakurathi
Abstract
हम सब मिलकर सदा पढ़ें,
बस एक ही मंत्र।
सदा अमर रहे हमारे,
देश का गणतंत्र।।
दिसंबर के मही...
गणतंत्र
तिरंगा
चोर
जीवन लाखों का...
प्यारी हिंदी ...
पत्रकार, तुम ...
डर
समस्या
हल को हुआ बंज...
जो भी शख्स खरा उतरा उसका जीवन धन्य हो गया। जो भी शख्स खरा उतरा उसका जीवन धन्य हो गया।
रूठे जब तु नेह से तुझे मनाऊंगी सुन माखन मिश्री खिलाऊंगी। रूठे जब तु नेह से तुझे मनाऊंगी सुन माखन मिश्री खिलाऊंगी।
अनछूए ओस की बूंद सी मासूमियत कहां होती है भला। अनछूए ओस की बूंद सी मासूमियत कहां होती है भला।
मन के खाली पन्नों पर , अपनी जिंदगी को हंसाने को। मन के खाली पन्नों पर , अपनी जिंदगी को हंसाने को।
जन समस्या, लोकतंत्र, विकास का कैसा होगा जतन। जन समस्या, लोकतंत्र, विकास का कैसा होगा जतन।
वो राज़ बहुत ही गहरा है चेहरे के पीछे चेहरा है। वो राज़ बहुत ही गहरा है चेहरे के पीछे चेहरा है।
आजीवन का साथ निभाने को हो सकता हो थोड़ा पीछे हो हमको जाना। आजीवन का साथ निभाने को हो सकता हो थोड़ा पीछे हो हमको जाना।
कुछ में अपनेपन की आस है, कुछ लगती बहुत ही खास है, कुछ में अपनेपन की आस है, कुछ लगती बहुत ही खास है,
जो जिह्वा से बोलते वो ही फंसते हैं जो मौन रहते वो कभी न उलझते हैं। जो जिह्वा से बोलते वो ही फंसते हैं जो मौन रहते वो कभी न उलझते हैं।
और जनाब यह दुनिया है एक झलक किसी पाने के लिए जिंदगी फना कर जाती है। और जनाब यह दुनिया है एक झलक किसी पाने के लिए जिंदगी फना कर जाती है।
परंतु चाहतों पर बंदिशों की अदृश्य लक्ष्मण रेखा भी खींच देते हैं। परंतु चाहतों पर बंदिशों की अदृश्य लक्ष्मण रेखा भी खींच देते हैं।
मैं इत्मिनान से सुबह सुबह चाय पका रही हूँ। मैं इत्मिनान से सुबह सुबह चाय पका रही हूँ।
अविनाशी खुद जाने माने, कमल पात सा रह जायें। अविनाशी खुद जाने माने, कमल पात सा रह जायें।
आँसू और बारिश क्या सच है मेरा ! मिट्टी की गुड़िया आज मिट्टी मैं ही ढेर हो ली। आँसू और बारिश क्या सच है मेरा ! मिट्टी की गुड़िया आज मिट्टी मैं ही ढेर हो ली।
कलि में कैसे धर्म बचेगा, अस्त -व्यस्त संसार हुआ है। कलि में कैसे धर्म बचेगा, अस्त -व्यस्त संसार हुआ है।
जन-जन के अंतर की दुविधा.. कैसे मिटाए क्षुधा.... कैसे मिटे क्षुधा. जन-जन के अंतर की दुविधा.. कैसे मिटाए क्षुधा.... कैसे मिटे क्षुधा.
चरम पर अपने आता जा रहा है बुलडोजर। चरम पर अपने आता जा रहा है बुलडोजर।
किरदार तो बस तू ही था, बस फ़साने बदलते रहे। किरदार तो बस तू ही था, बस फ़साने बदलते रहे।
ज़िंदगी पे जब भी प्यार आता है बहुत इन्हे चूमने को जी होता है बहुत। ज़िंदगी पे जब भी प्यार आता है बहुत इन्हे चूमने को जी होता है बहुत।
हे मानव घमंड न कर किसी बात का, न किसी रिश्ते न कुटुंब परिवार का। हे मानव घमंड न कर किसी बात का, न किसी रिश्ते न कुटुंब परिवार का।