पत्रकार, तुम सच मत लिखो
पत्रकार, तुम सच मत लिखो


पत्रकार, तुम ये क्या कर रहे हो ?
पत्रकार, तुम राष्ट्रप्रेम की बात कर रहे हो !
छि छि छि
गलत बात !
पत्रकार, तुम ये क्या कर रहे हो ?
अरे ! तुम सच दिखा रहे हो...
छि छि छि
बहुत ही गलत बात !
पत्रकार, तुम ये क्या कर रहे हो ?
पत्रकार, तुम सत्ता के खिलाफ लिख रहे हो !
हे राम !
पत्रकार ऐसा मत करो
क्या तुमको नहीं जीना ?
पत्रकार, सुनो !
यहाँ अनेक दल हैं
अनेक दलों के
अनेक झंडे हैं
ये झंडे राजनीतिक हो सकते हैं
ये झंडे सामाजिक हो सकते हैं
ये झंडे सांस्कृतिक हो सकते हैं
और
ये झंडे धार्मिक भी हो सकते हैं
पत्रकार सुनो !
ये झंडे फहराये जाते हैं
केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु
क्या तुम इन झंडों से अपेक्षा
रखते हो ?
नहीं पत्रकार नहीं
ये झंडे तुम्हारे लिए
झुका दिए जायेंगे...
पत्रकार, सुनो मेरी बात सुनो,
जिनके लिए तुम
उठाते हो आवाज
वो ही तुम्हारी पुकार नहीं सुनेंगे
जिनके लिए तुम लड़ते हो लड़ाई
व
ो ही तुम्हारा दुख
नहीं देखेंगे
पत्रकार, जब वक्त आयेगा
तुम्हारे लिए कुछ बोलने का
तब सब चुप्पी साध लेंगे !
पत्रकार !
किससे उम्मीद लगाए बैठे हो
अंधों से
बहरों से
गूंगों से
या फिर उस देवी से
जिसे हांक रहे हैं लठैत
अपनी लाठी से
पत्रकार, अब भी वक्त है
संभल जाओ
पत्रकार,
लक्ष्मी को रूष्ट मत करो
पत्रकार जो मिल रहा है
उसे स्वीकार करो
और
बेच डालो अपनी कलम
पत्रकार ! बंद कर दो
सच्ची खबरें दिखाना..
पत्रकार वही दिखाओ
जो राजा देखना चाहता है
पत्रकार वही बोलो
जो राजा सुनना चाहता है
पत्रकार वही लिखो
जो राजा पढ़ना चाहता है
पत्रकार, तुम एक काम करो
तुम अपने चैनल पर
सास बहू के पंगे दिखाओ
तुम अपने चैनल पर
प्रायोजित मारधाड़ दिखाओ
तुम अपने चैनल पर
अनावृत्त लड़की का नाच दिखाओ
पत्रकार तुम सब दिखाओ
लेकिन सच्ची खबर मत दिखाओ
पत्रकार रहने दो
तुम सच मत लिखो
वरना इसकी कीमत तुम्हें
जान देकर चुकानी पड़ेगी।।